एक बहुत ही प्रचलित कथन है कि ‘काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का’ देश भर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर बहुत ही खास है। आपको बता दें कि पूरे विश्व भर में उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर एक ऐसा शिव मंदिर है जो दक्षिण मुखी है और यहां प्रतिदिन प्रात 4:00 बजे भस्म से बाबा महाकाल की आरती की जाती है। आईए जानते हैं मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य…
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उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर संपूर्ण विश्व में विख्यात है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान शिव का यह मंदिर भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य में उज्जैन जिले के कुशलपुर नगर में स्थित है जो उज्जैन का एक महत्वपूर्ण भाग है। भगवान शिव का एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर रूप में उज्जैन में विराजमान है इसलिए उज्जैन को बाबा महाकाल की नगरी भी कहा जाता है।
प्राचीन नगरी उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन हेतु दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। उज्जैन के बाबा भगवान शिव के अन्य ज्योतिर्लिंगों के समान ही बाबा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना विशेष महत्व है। उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस ज्योतिर्लिंग से कई पौराणिक व धार्मिक कथाएं जुड़ी हुई हैं तथा भगवान शिव के इस मंदिर से कई रहस्य भी जुड़े हुए हैं। तो आज हम भगवान शिव के इस प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के रहस्यों और विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।
उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर का महत्व
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर तीन मंजिला बना हुआ है। मंदिर के भूतल पर बाबा महाकालेश्वर, प्रथम तल पर ओंकारेश्वर महाराज तथा मंदिर के ऊपरी भाग में नागचंद्रेश्वर महाराज लिंग के रूप में विराजमान हैं। महाकालेश्वर मंदिर में नागचंदेश्वर शिवलिंग का दर्शन केवल नाग पंचमी के दिवस ही होता है। मंदिर परिसर में कोटि तीर्थ नामक एक कुंड बना हुआ है जिसका जल अत्यंत दिव्य व पवित्र माना जाता है। मंदिर के गर्भ में जाने के लिए रास्ता एक बरामदे से होकर जाता है जो कि इस दिव्य कुंड के पूर्व में है।
धार्मिक विशेषता
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर हिंदुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। हिंदुओं में मान्यता है कि बाबा महाकाल के दर्शन करने से भक्त सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकाल के दर्शन से भक्तों को अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा मिल जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
प्राचीन वास्तुकला
बाबा महाकाल का मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक विशेष उदाहरण है। इस मंदिर में पांच स्तरीय शिखर बना हुआ है। मंदिर में अद्भुत नक्काशी का संगम देखने को मिलता है और मंदिर में एक विशाल प्रवेश द्वार भी है। मंदिर के गर्भ ग्रह में बाबा महाकाल शिवलिंग के रूप में विराजमान है।
आध्यात्मिक महत्व
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है। नदी की बहती हुई पवित्र जल धारा की कल-कल करती ध्वनि मन व मंदिर के वातावरण को आध्यात्मिक और आनंदमय बनाती है। कहा जाता है की देवी क्षिप्रा जो नदी के रूप में विराजमान है वह भगवान शिव की बहन है।
भस्म आरती और महत्व
महाकाल की भस्म आरती प्रतिदिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में 4:00 बजे भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार उज्जैन में पहले राजा चंद्रसेन का शासन था। वहां दूषण नामक राक्षस ने आक्रमण कर दिया था। दूषण नामक राक्षस से अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने दूषण राक्षस का वध कर दिया, इसके पश्चात् राक्षस की चिता से बनी राख से अपना श्रृंगार किया और वहां बस गए। तभी से उज्जैन में महाकाल की भस्म आरती आरंभ हो गई। उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन होने वाली भस्म आरती एक अद्भुत और दिव्य अनुष्ठान है। भस्म आरती में भक्तों को आध्यात्मिकता और दिव्यता का अनुभव होता है।
- भस्म आरती के दौरान भक्त अपनी श्रद्धा भावना के चरम पर होता है। इस समय भक्त अपनी अंतर आत्मा से बाबा महाकाल की अर्चना करता है।
- बाबा महाकाल की भस्म आरती का प्रयोजन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह भक्तों को मोक्ष की ओर ले जाता है।
- भस्म आरती के समय मंदिर और उसके आसपास का वातावरण मनमोहक और आनंदमय हो जाता है।
- भस्म आरती में भाग लेने वाले पुजारी और भक्त को विशेष प्रकार के वस्त्र धारण करने पड़ते हैं जिसमें भक्तों को धोती धारण करनी पड़ती है और इस आरती को केवल पुरुष ही देख सकते हैं।
- भस्म आरती के पश्चात् भक्तों को बाबा महाकाल पर चढ़ी हुई पवित्र भस्म को थोड़ी-थोड़ी मात्रा के रूप में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इस भस्म को अपने शरीर या माथे पर लगाने से आध्यात्मिक शुद्धि और सुरक्षा मिलती है।
मंदिर का रहस्य
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर से कई पौराणिक और वैज्ञानिक रहस्य भी जुड़े हुए हैं। उज्जैन महाकाल मंदिर से जुड़े यह रहस्य भक्तों को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत प्रभावित करते हैं। महाकाल मंदिर को एक अद्वितीय स्थान के रूप में जाना जाता है और भगवान महाशिव ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विद्यमान है। यहां के कई क्षेत्र विचित्रता और रहस्य का अनुभव कराते हैं, जिनमें से कुछ रहस्य निम्न है….
- कहां जाता है कि उज्जैन में कोई भी शासक या राजा रात में नहीं ठहर सकता है क्योंकि उज्जैन के एकमात्र राजाधिराज महाराज महाकाल हैं अगर कोई राजा या शासक रात्रि में यहां रुकता है तो उसे अपनी इस गलती का परिणाम भुगतना पड़ सकता है। सौ बात की एक बात कि ‘एक नगरी में दो राजा नहीं ठहर सकते।’
- उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर के शिखर से होकर पृथ्वी की कर्क रेखा गुजरती है इसलिए इस मंदिर को पृथ्वी की नाभि भी कहा जाता है।
- महाकाल मंदिर के ज्योतिर्लिंग को वैज्ञानिक भी ऊर्जा का केंद्र मानते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर निर्माण एक ऐसे सौर स्थल पर किया गया है जहां पर सूर्य की ऊर्जा का उपयोग होता है जो मंदिर की शांति और ध्यान को बढ़ाता है।
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उज्जैन महाकालेश्वर जाने का सही समय क्या है?
उज्जैन महाकालेश्वर जाने का सही समय क्या है? उज्जैन में गर्मियों के समय अधिक गर्मी पड़ती है तथा सर्दियों के समय अधिक सर्दी पड़ती है इसलिए उज्जैन महाकालेश्वर जाने के लिए सबसे उचित समय मार्च अप्रैल और अक्टूबर नवंबर में होता है।
महाकालेश्वर मंदिर खुलने का समय क्या है?
मंदिर की परंपरा के अनुसार मंदिर खुलने का समय प्रत्येक रविवार को सुबह 2:30 बजे तथा सप्ताह के अन्य दिन सुबह 3:00 बजे होता है। श्रवण भादो मास के प्रत्येक सोमवार को भगवान महाकाल की सवारी भी निकलती है।
उज्जैन में महाकालेश्वर को प्रसाद में क्या चढ़ाया जाता है?
उज्जैन में महाकालेश्वर के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से कई श्रद्धालु आते हैं और बाबा महाकालेश्वर को प्रसाद में शुद्ध देसी घी के लड्डू का भोग लगाया जाता है।
महाकाल की भस्म आरती क्यों की जाती है?
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती प्रातः 4:00 बजे भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार उज्जैन में पहले राजा चंद्रसेन का शासन था। वहां दूषण नामक राक्षस ने आक्रमण कर दिया था। दूषण नामक राक्षस से अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने दूषण राक्षस का वध कर दिया। इसके पश्चात राक्षस की राख से अपना श्रृंगार किया और वहां बस गए। तभी से उज्जैन में महाकाल की भस्म आरती की प्रथा आरंभ हो गई।