Shiv Rudrastakam : शिवरात्रि पर ‘शिव रुद्राष्टकम’ का पाठ क्यों करना चाहिए?

Shiv Rudrastakam : शिवरात्रि का पर्व भारत में बड़े ही हर्षोल्लास तथा उत्साह के साथ मनाया जाने वाला एक धार्मिक उत्सव है। शिवरात्रि के अवसर पर भारत के सभी शिवालयों तथा मंदिरों को सुंदर झांकियों, कलाकृतियों तथा रंगोलिया से सजाया जाता है। शिवरात्रि के उत्सव पर मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान शंकर तथा माता पार्वती का विवाह हुआ था। शिवरात्रि प्रतिवर्ष फागुन मास की कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी को मनाई जाती है। इस शिवरात्रि को ‘महाशिवरात्रि’ का पर्व कहते हैं।

यह शिवरात्रि वर्ष की 12 शिवरात्रि में सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस दिन भगवान शिव की भक्त, जो कावड़िया रूप में, गंगा का जल लाकर भगवान शिव पर अर्पित करते हैं। महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शिव की पूजा अर्चना के साथ-साथ कई मंत्रों तथा स्तोत्रों का पाठ भी किया जाता है, इन्हीं स्तोत्रों में से एक स्तोत्र ‘श्री शिवरुद्राष्टकम स्त्रोत’ है, जिसका पाठ करने से मनुष्य को आंतरिक सुख की अनुभूति होती है।

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शिवरात्रि पर शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ क्यों करना चाहिए?

शिवरात्रि के शुभ अवसर पर रुद्राष्टकम का पाठ करने से मनुष्य को भय, रोग, दोष, काम तथा क्रोध इत्यादि विकारों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से मनुष्य का जीवन सुखमय हो जाता है और भगवान शिव की कृपा भक्तों पर सदैव बनी रहती है। रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत ही शुभ माना गया है। रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की आत्मा को शांति तथा आध्यात्म का अनुभव होता है।

Shiv Rudrastakam : शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं

भजेऽहम्॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं, गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालं, गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥2॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं, मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा, लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्॥

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,

  ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥

शिव रुद्राष्टकम् सुनें


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