Rameshwaram Temple : रामेश्वरम मंदिर भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर है जो दक्षिण भारत में समुद्र तट पर बना हुआ है इस मंदिर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जिसे हम रामास्वामी ज्योतिर्लिंग या रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भी कहते हैं। भगवान शिव का यह अनूठा शिवलिंग भगवान विष्णु के मानव अवतार श्री राम के द्वारा बनाया गया था। रामेश्वरम मंदिर भगवान शिव को समर्पित विश्व प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है। यहां देश-विदेश से अनेक भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं।
Table of Contents
Rameshwaram Temple : रामेश्वरम मंदिर
भारत देश में विभिन्न विश्व प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल हैं जिनका अपना-अपना महत्व है और इन सभी तीर्थ स्थलों का एक प्राचीन इतिहास भी हैं। भारत में आपको हजारों साल पुराने स्थापित किए हुए मनोहर और सुंदर मंदिर मिल जाएंगे। इन्हीं मंदिरों में से एक है, भगवान शिव का रामेश्वरम मंदिर। रामेश्वरम का अर्थ है- “राम के ईश्वर”। यह रामेश्वर मंदिर भारत के दक्षिण में स्थित है। इस पवित्र मंदिर को चार धामों में एक भी कहा गया है। इस मंदिर को स्थानीय भाषा में रामनाथ स्वामी मंदिर के नाम से भी जानते हैं। रामेश्वरम मंदिर हिंद महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ एक सुंदर द्वीप है जिसका आकार एक सुंदर शंख की तरह नजर आता है।
प्राचीन काल से ही इन चारों तीर्थों अर्थात् चार धामों का धार्मिक महत्व रहा है। इस धार्मिक महत्व को एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए इन पवित्र चार धामों की स्थापना चार अलग-अलग दिशाओं में की गई है। उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत पर बद्रीनाथ धाम, पश्चिम में द्वारकापुरी धाम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी धाम तथा दक्षिण में रामेश्वरम धाम स्थित है। यह चारों धाम भौगोलिक दृष्टि से पृथ्वी पर एक परिपूर्ण वर्ग का निर्माण करते हैं, जिनमें से बद्रीनाथ धाम और रामेश्वरम धाम एक देशांतर रेखा पर पड़ते हैं जबकि जगन्नाथ पुरी धाम एवं द्वारका धाम एक ही अक्षांश पर पड़ते हैं। यह भी एक भौगोलिक चमत्कार है। पुराणों में रामेश्वरम धाम को गंधमादन भी बताया गया है।
रामेश्वरम मन्दिर की पौराणिक कथा
भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग के बारे में शिव पुराण और स्कंद पुराण में भी बताया गया है। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्री राम ने अपने हाथों से की थी। कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम, रावण से युद्ध करने के के लिए लंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे, उससे पूर्व भगवान श्री राम ने इसी स्थान पर समुद्र की बालू से भगवान शिव की इस शिवलिंग का निर्माण किया था तथा भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। तभी से भगवान शिव का यह शिवलिंग रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस संबंध में कई किवदंतियां प्रचलित हैं जिनमें से एक अन्य किवदंती यह भी है कि जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के बाद रावण का वध कर दिया था और वध करने के पश्चात् माता सीता को लेकर अयोध्या वापस लौट रहे थे, तब भगवान श्री राम ने अपना पहला पढ़ाव गंधमाधव नामक पर्वत पर डाला था।
भगवान श्री राम की गंधमाधव पर्वत पर आने की खबर सुनकर सभी ऋषि मुनि वहां पहुंचकर भगवान श्री राम के दर्शन करने पहुंचे। इसके पश्चात् भगवान श्री राम ने ऋषि मुनियों से कहा कि “रावण पुलस्य वंश का ब्राह्मण था और रावण का वध करने से मुझ पर ब्रह्म हत्या जैसा गंभीर पाप चढ़ गया है। ऋषि-मुनि कृपया मुझे इस ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने के लिए कोई उचित उपाय बताएं।”
तभी वहां स्थित ऋषि मुनियों ने भगवान श्री राम को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने के लिए एक उचित उपाय बताया और कहा कि “ब्रह्म हत्या से मुक्ति पाने के लिए एक बहुत ही सरल उपाय है कि आप भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना करें और भगवान शिव की पूजा अर्चना करें।”
ऋषि मुनियों की बात सुनने के पश्चात् भगवान श्री राम ने अपने परम भक्त हनुमान को कैलाश पर्वत जाकर स्वयं भगवान शिव से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। अपनी प्रभु श्री राम का आदेश सुन भक्त हनुमान तुरंत ही कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान कर गए और भगवान शिव से शिवलिंग लेने के लिए भगवान शिव की प्रतीक्षा करने लगे। परंतु भक्त हनुमान को भगवान शिव के दर्शन प्राप्त नहीं हुए। जब भक्त हनुमान को भगवान शिव के दर्शन प्राप्त न हुए, तो भक्त हनुमान वहीं कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या करने लगे।
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने हनुमान जी को दर्शन दिये, और अपना प्रतिरूप शिवलिंग हनुमान को दे दिया। जब हनुमान भगवान शिव का शिवलिंग लेकर भगवान श्री राम के पास पहुंचे, तब तक तो शुभ मुहूर्त निकल चुका था और वहीं माता सीता ने समुद्र की रेत से एक सुंदर शिवलिंग की स्थापना कर दी थी। जब भक्त हनुमान ने यह देखा तो वह बहुत दुखी हुए कि वह समय से ना पहुंच सके।
इस पर भक्त हनुमान ने रेत से बने शिवलिंग को वहांं से हटाने का काफी प्रयत्न किया लेकिन वह शिवलिंग अपनी स्थान से टस से मस न हुआ। आज भी इस शिवलिंग पर पूछ कि निशान मौजूद है, तो भगवान श्री राम ने भक्त हनुमान द्वारा लाये शिवलिंग को भी इस स्थान पर स्थापित कर दिया और कहा की जो भी भक्त यहां रामेश्वरम में दर्शन करने आएगा वह सर्वप्रथम तुम्हारे द्वारा लाए हुए शिवलिंग की पूजा पहले करेगा और भक्त हनुमान द्वारा लाये गये शिवलिंग को विश्व लिंगम नाम दिया तथा माता सीता द्वारा निर्मित रेत के शिवलिंग को राम लिंगम कहा जाता है।
रामेश्वरम मंदिर में स्थित है 22 तीर्थ
रामेश्वरम मंदिर के अंदर 22 तीर्थ स्थित है। जिसमें कोटि तीर्थ जैसे एक-दो तालाब भी हैं। भगवान शिव के रामेश्वरम मंदिर में सबसे पहले तीर्थ को अग्नि तीर्थं कहते हैं और यहां मान्यता है कि अग्नि तीर्थ कुंड में जो भी श्रद्धालु स्नान करते हैं, उनके जन्म जन्मांतर के सभी पाप धुल जाते हैं और मन को शुद्धता प्रदान होती है। इस तीर्थ से निकलने वाला जल बहुत ही चमत्कारिक गुणों से भरपूर माना जाता है। कहा जाता है, ‘जो भी श्रद्धालु पूजा करने से पूर्व अग्नि तीर्थं में स्नान करता है’ उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं तथा शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।
Where is Rameshwaram Mandir situated : रामेश्वर मंदिर कहां स्थित है?
भगवान शिव का यह अद्भुत और चमत्कारी रामेश्वर मंदिर भारत में तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह मंदिर तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से लगभग 680 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में स्थित है।
भगवान शिव का यह प्रसिद्ध मंदिर भारत के पवित्र चार धामों में से एक धाम है भगवान शिव का यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जिस प्रकार उत्तर में स्थित काशी का महत्व है ठीक उसी प्रकार दक्षिण में भगवान शिव का यह अद्भुत और चमत्कारी रामेश्वरम मंदिर है।
मंदिर की वास्तुकला
रामेश्वरम मंदिर की बनावट अत्यंत ही भव्य और सुंदर है। यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में बनाया गया है। मंदिर के मुख्य द्वार पर लगभग 100 फीट ऊंचा एक गोपुरम है। रामेश्वरम् मंदिर क्षेत्र में धनुष कोटि, चक्र तीर्थ, शिव तीर्थ, अगस्त्य तीर्थ, गंगा तीर्थ, यमुना तीर्थ आदि पवित्र जगहें बनी हुई हैं। इस मंदिर की बड़ी-बड़ी ग्रेनाइट की जटिल नक्काशीदार दीवारें हैं, जिन पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं। यह मंदिर परिसर लगभग 15 एकड़ में फैला हुआ है।इस मंदिर में विश्व प्रसिद्ध अत्यंत ही सुंदर और अद्भुत एक गलियारा है। इस मंदिर में पांच मुख्य हाल है- सुक्रवारा मंडप, अनुप्पु मंडपम, सेतुपति मंडपम, नंदी मंडपम और कल्याण मंडपम।
गर्भ ग्रह के अंदर इस मंदिर में भगवान शिव के दो लिंगम स्थापित हैं, एक लिंगम का नाम “रामलिंगम” तथा दूसरे लिंगम का नाम “विश्वलिंगम” है। मंदिर में भगवान शिव के भक्त नंदी की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित है। यह मूर्ति 12 फीट लंबी 9 फीट ऊंची है। मंदिर में सैकड़ों बलुआ पत्थर के खंभों, बीमों और ऊंची छतों से बने कई गलियारे हैं। 4000 से अधिक स्तंभों वाले इन गलियारों की कुल लंबाई लगभग 3800 फीट है।रामेश्वरम मंदिर की लंबाई लगभग 1000 फीट, चौड़ाई 650 फीट तथा द्वारा की ऊंचाई लगभग 40 फिट है।
रोचक तथ्य
- रामेश्वम को गंधमादन पर्वत भी कहा जाता है।
- इस स्थान पर भगवान श्री राम ने नवग्रह की स्थापना की और सेतुबंध यहीं से शुरु हुआ था।
- रामेश्ववरम मंदिर के कुंड में डुबकी लगाने से सारी बीमारियां दूरी होती है और पापों से मुक्ति मिलती है।
- इस पवित्र स्थल पर मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।
- रामेश्वरम धाम में उत्तराखंड के गंगोत्री से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करने का विशेष महत्व है।
- रामेश्वरम से कुछ दूरी पर स्थित जटा तीर्थ कुंड है जिसमें भगवान श्रीराम ने लंका में रावण का वध करके अपने केश धोए थे।
- रामेश्वरम मंदिर में अन्य देवी-देवताओं को समर्पित मंदिर भी बने हुए हैं ।
- रामेश्वरम मंदिर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर धनुष्कोटि नामक जगह है जहां पर पितृ-मिलन एवं श्राद्ध तीर्थ नामक जगह हैं।
- रामेश्वम मंदिर में महाशिवरात्रि का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।
- रामेश्वरम मंदिर प्रसिद्ध चार धाम में से एक है।
- रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है।
रामेश्वरम मंदिर कैसे पहुंचें
रामेश्वरम का निकटतम हवाई अड्डा मदुरई में है, जो यहां से लगभग 149 किलोमीटर दूर है। यहां से आप प्राइवेट टैक्सी, बस तथा ट्रेन से रामेश्वरम पहुंच सकते हैं।
भारतवर्ष के सभी प्रमुख शहरों से रामेश्वरम जाने के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं। रामेश्वरम पहुंचने के लिए आप सड़कों के माध्यम से भी जा सकते हैं। रामेश्वरम अच्छी तरह से सड़कों से जुड़ा हुआ है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q. रामेश्वरम मंदिर जाने का सही समय क्या है?
Ans. मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु किसी भी समय आ सकते हैं। परन्तु यहां आने का सबसे सही समय अक्टूबर से अप्रैल के मध्य होता है। क्योंकि जुलाई से सितंबर के मध्य बारिश का मौसम होता है, वैसे तो बारिश में भी यहां का नजारा बहुत ही आनंदमय होता है, आपको बारिश से कोई खास दिक्कत नहीं है तो आप रामेश्वर मंदिर किसी भी समय जा सकते हैं।
Q. रामेश्वरम में कितने कुएं हैं?
Ans. रामेश्वरम मंदिर में 108 कुएं हैं, जिनमें से 20 कुएं रामेश्वरम मंदिर के अंदर हैं। मंदिर के आसपास के स्थानों पर हैं।
Q. रामेश्वरम शिवलिंग किसने बनाया था?
Ans. रामेश्वर रामेश्वरम में स्थित शिवलिंग का निर्माण स्वयं माता सीता ने समुद्र कि रेत से किया था।