संपूर्ण विश्व में भारत आस्था, विश्वास और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। भारतीय विविध आस्थाओं में विश्वास रखते हैं। कई वर्ष पूर्व सभी सनातन प्रेमियों ने एक स्वर्णिम स्वप्न देखा था, जो अब पूरा होने जा रहा है वह है – “राम मंदिर अयोध्या”। अयोध्या भगवान श्री राम की जन्मभूमि है। भगवान श्री राम जिनकी छवि सभी सनातन प्रेमियों के हृदय में आदर्श के रूप में विद्यमान है और उनका जीवन मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रसिद्ध है। आईए जानते हैं की राम मंदिर अयोध्या सनातन प्रेमियों के लिए स्वर्णिम स्वप्न क्यों था?
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प्राचीन समय में श्री राम का जन्म स्थान
भगवान श्री राम हिंदू धर्म के प्रमुख देवता और श्री विष्णु जी के अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने अधर्म का नाश करने के लिए पृथ्वी पर मनुष्य रूप में अवतार लिया था। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण के अनुसार श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। अयोध्या को श्रीराम की जन्मभूमि या राम जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है, जिसे भारतीय संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान बताया गया है। अयोध्या सरयू नदी के किनारे बसा हुआ मनोरम शहर है। अयोध्या में विभिन्न घाट, मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जिनसे लोग संस्कृतिक और धार्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। अयोध्या कई सत्यवादी, पराक्रमी, तेजस्वी राजा-महाराजाओं की नगरी रही है। अयोध्या को पावन नगरी कहा जाता है। सनातन धर्म में अयोध्या नगरी का विशेष महत्व है।
“राम मंदिर अयोध्या” को लेकर विवाद
लगभग 15वीं शताब्दी में मुगल शासक बाबर ने उत्तर भारत के मंदिरों पर आक्रमण व लूटपाट की। बाबर ने कई मंदिर विध्वंस कर दिए जिसमें हिंदुओं की आस्था व विश्वास का प्रतीक राम मंदिर भी शामिल था, जो अयोध्या में स्थित था। राम मंदिर को नष्ट करने के पश्चात् बाबर ने बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी। इसके बाद बाबरी मस्जिद हिंदू और मुस्लिम विवाद का केंद्र बन गई। लगभग 1850 के दशक में यह विवाद हिंसक रूप ले चुका था।लगभग सन् 1859 में मंदिर-मस्जिद तथा धार्मिक और सांप्रदायिक विवाद को बढ़ता देखकर अंग्रेजों ने नमाज व पूजा के लिए मुसलमानों को अंदर का हिस्सा और हिंदुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग करने के लिए कहा। इसके पश्चात भी मंदिर-मस्जिद विवाद एक ऐतिहासिक विवाद का केंद्र बना रहा।
यह विवाद तब बड़ा हुआ जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहां एक नया मंदिर बनाने के लिए एक लंबा आंदोलन चलाया गया। 6 दिसंबर सन् 1992 को मुग़ल सम्राट बाबर द्वारा राम मंदिर को नष्ट करके बनाई गई इस बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया और वहां श्री राम का एक अस्थाई मंदिर निर्मित कर दिया गया, जिसके परिणाम स्वरूप एक लंबा और संघर्षशील विवाद उत्पन्न हुआ तथा विभिन्न शीर्षक और कानूनी विवाद भी उत्पन्न हुए।
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद कई समय से उच्चतम न्यायालय में लंबित था। मंदिर-मस्जिद विवाद का फैसला करने के लिए पांच जजों की मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली कमेटी गठित हुई। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सन् 2019, 9 नवंबर को एक निर्णय लिया जिसके अंतर्गत उच्च न्यायालय के फैसले को खंडित कर दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पांच जजों की अध्यक्षता वाली बेंच ने 5-0 से एक मत होकर विवादित स्थल को मंदिर का स्थल बताते हुए फैसला रामलला के पक्ष में सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर-बाबरी मस्जिद पर दिया गया निर्णय एक ऐतिहासिक क्षण रहा। इस फैसले के अंतर्गत विवादित भूमि को राम जन्मभूमि माना गया और इस भूमि पर राम मंदिर का निर्माण करने की अनुमति दी। राम मंदिर की भूमि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंप दी गई तथा मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश सरकार को दिया गया। अब विवादित भूमि पर भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बन गया है।
एक स्वर्णिम स्वप्न जो अब पूरा हुआ
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सन् 2020 में तत्कालीन सरकार ने मंदिर निर्माण की योजना को मंजूरी दी और सनातन प्रेमियों के हृदय में बसे भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के इस स्वर्णिम स्वप्न को साकार करने में एक कारगर कदम उठाया। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो राम मंदिर भारतीय समाज में एकता और संबोधन का संदेश देता है, जो विभाजन के बाद भी अब तक बरकरार रहा। इस स्वर्णिम स्वप्न की राह ने हमें यह भी सिखाया है कि सामंजस्य और समर्पण से हम अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं। राम मंदिर अयोध्या की नई शुरुआत हमें यह समझाती है कि हम सब मिलकर सुख, समृद्धि और भव्यता से भरे भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।