ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे प्रकट हुआ और उससे जुड़े अद्भुत रहस्य

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भारत देश विभिन्न आस्था और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है यहां पर भिन्न-भिन्न देवी देवताओं से लोगों की अस्थाई जुड़ी हुई है उन्हें में से एक है भगवान शिव जिन्हें हिंदू देवी देवताओं में सर्वोच्च माना गया है भगवान शिव पृथ्वी पर 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में विराजमान है। भगवान शिव के यह 12 ज्योतिर्लिंगों अपनी-अपनी महत्वता के बारे में जाने जाते हैं। ज्योतिर्लिंग का तात्पर्य है – ‘प्रकाश का स्तंभ’। ‘स्तंभ’ चिन्ह यह दर्शाता है कि ‘ना तो इसका कोई आरंभ है ना ही कोई अंत अर्थात भगवान शिव अनंत है’।

एक बहुत ही प्राचीन की वेदांती है कि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के मध्य सर्वोच्चता को लेकर झगड़ा हो रहा था इसी दौरान भगवान शिव एक प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए जिसका ना कोई आदि था ना कोई अंत इस प्रकाश स्तंभ के रूप को ही शिवलिंग कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव साक्षात रूप में इन ज्योतिर्लिंगों में विराजमान है भगवान शिव के इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं इस शिवलिंग की भी विशेष महत्वता है इस शिवलिंग के दर्शन करने के लिए प्रतिदिन अनगिनत श्रद्धालु आते हैं आईए जानते हैं भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग से जुड़े रहस्य और इसकी उत्पत्ति के बारे में…

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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग हिंदुओं की चरम आस्था का केंद्र है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मां नर्मदा नदी के मध्य एक द्वीप पर स्थित है जिसे ओमकार पर्वत भी कहा जाता है और यहां पर मां नर्मदा नदी स्वयं ओम के आकार में बहती हैं। यह एक प्रकृतिक अजूबा है कि यह ओंकार पर्वत भी ओम के आकार सा बना हुआ है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एक अत्यंत ही पवित्र व सिद्ध स्थान है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर एक मान्यता है कि जब तक तीर्थ यात्री सभी तीर्थों की यात्रा करने के पश्चात उन तीर्थ स्थलों का जल ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर नहीं चढ़ाते हैं, तब तक उनकी सभी तीर्थों की यात्रा को अधूरा माना जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ मां नर्मदा का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों की मान्यता के अनुसार यमुना जी में 15 दिन तथा गंगा जी में किया गया 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना ही पुण्य फल मां नर्मदा जी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग एक छोटे से गोल काले पत्थर के रूप में स्थित है जिसके चारों ओर पानी भरा रहता है। ओंकारेश्वर मंदिर दो मंदिरों में विभाजित है, जिसमें से पहला मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर तथा दूसरा मंदिर अमरेश्वर मंदिर(ममलेश्वर मंदिर) के रूप में स्थित है।

अमरेश्वर ज्योतिर्लिंग या ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओंकारेश्वर मंदिर दो भाग में विभाजित है – पहला है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा दूसरा है ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग। ओंकारेश्वर मंदिर 5 मंजिला है और प्रत्येक मंजिल पर शिवालय स्थित है। भगवान शिव ने शिवलिंग को दो भागों में विभाजित कर दिया था, एक का नाम ‘ओंकारेश्वर’ तथा दूसरे का ‘अमरेश्वर या ममलेश्वर’ है, इसलिए जब भक्त मांधाता जाते हैं तो इन दोनों मंदिरों के दर्शन करते हैं। देवी अहिल्याबाई होलकर के समय से यहां पार्थिव शिवलिंग का भी पूजन होता रहा है। लगभग 22 ब्राह्मणों द्वारा सवा लाख पार्थिव शिवलिंगों द्वारा ममलेश्वर शिवलिंग का पूजन किया जाता था। इस पूजा अनुष्ठान में होने वाली सारी धनराशि का खर्च होलकर राज्य संभालता था तथा ब्राह्मणों को दान और पारिश्रमिक भी देता था।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहां स्थित है

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य के खंडवा जिले में है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मां नर्मदा नदी में स्थित मांधाता द्वीप पर ओंकार नामक पर्वत पर स्थित है। यह पर्वत ‘ॐ’ के आकार में स्थित है। ‘ॐ’ अक्षर को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र और शक्तिशाली माना गया है। मंदिर के चारों ओर अनेक सुंदर-सुंदर पहाड़ियां सुशोभित हैं जो इस द्वीप और मंदिर की सुंदरता को बढ़ाती हैं। नर्मदा नदी पर 270 फीट का एक हैंगिंग ब्रिज है जो एक ब्रैकेट पुल के रूप में स्थित है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास

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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। ओंकारेश्वर मंदिर हिंदुओं में सर्वोच्च माने जाने वाले भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है। ओंकारेश्वर शब्द दो शब्दों से बना हुआ है, पहला है ‘ओम’ जो हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तथा शक्तिशाली माना गया है, दूसरा शब्द है ‘ईश्वर’, जिसका अर्थ है ‘भगवान’ अर्थात ‘ओंकारेश्वर’ का तात्पर्य है ‘पवित्र ओम के भगवान’।

मांधाता ओम्कारेश्वर पर धार के परमार,मालवा के सुल्तान,ग्वालियर के सिंधिया जैसे तत्कालीन शासको का शासन रहा। परमार राज्य के समाप्त होने के पश्चात यह क्षेत्र मुगलों की अधीन हो गया। मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात राजनीतिक शून्यता के कारण ओंकारेश्वर सहित मध्य भारत में मराठाओं की शक्ति का विस्तार हुआ और यह पवित्र शहर होलकर साम्राज्य की रानी अहिल्याबाई होलकर के अधीन स्वर्णिम युग में प्रवेश कर गया। अंत में यह 1894 में अंग्रेजों की अधीन हो गया।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कहानी क्या है

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कई कहानियां तथा किवदंतियां हैं, जिनमें से कुछ निम्न है –

  • इक्ष्वाकु वंश के राजा मांधाता ने नर्मदा नदी के तट पर स्थित पर्वत पर भगवान शिव की घोर तपस्या की और भगवान शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया। राजा मांधाता की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रकट हुए और भगवान शिव ने राजा मांधाता से वरदान मांगने को कहा। तब राजा मांधाता ने भगवान शिव से वहीं ठहरने का आग्रह किया। तभी से वह स्थान ओंकार मांधाता के रूप में पुकारा जाने लगा। राजा मांधाता के इस पर्वत पर घोर तपस्या करने के कारण इस पर्वत को मांधाता पर्वत के नाम से भी जाना जाने लगा। तभी से भगवान शिव इस द्वीप के पर्वत पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए। 
  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी हुई माँ नर्मदा को लेकर एक प्रसिद्ध किवदंती है। कहा जाता है की मां नर्मदा भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं और उनसे अत्यधिक प्रेम करती थीं, इसलिए भगवान शिव के समीप रहना चाहती थीं। मां नर्मदा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और भगवान शिव मां नर्मदा की तपस्या से अत्यधिक प्रसन्न हुए। भगवान शिव ने मां नर्मदा की भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें एक वरदान दिया कि वह नर्मदा नदी के एक द्वीप पर शिवलिंग के रूप में विराजमान होंगे। आज यही शिवलिंग ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।
  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक किवदंती यह भी है कि एक बार ऋषि मुनि नारद विंध्याचल पर्वत पर पहुंचे और वहां पहुंचते ही पर्वतराज विंध्याचल ने ऋषि मुनि नारद जी का बहुत ही आदर और सत्कार किया। इसके बाद पर्वतराज विंध्याचल ने ऋषि मुनि नारद से कहा – ‘मैं सर्वगुण संपन्न हूं। मेरे पास सब कुछ है।’ ऋषि मुनि नारद पर्वतराज विंध्याचल की बातों को चुपचाप खड़े सुनते रहे।

जब पर्वतराज विंध्याचल की बात समाप्त हुई तो ऋषि मुनि नारद पर्वतराज विंध्याचल से बोले कि मुझे ज्ञात है कि तुम सर्वगुण संपन्न हो, परंतु फिर भी तुम सुमेरु पर्वत से छोटे हो। सुमेरु पर्वत को देखो जिसका भाग देवलोकों तक पहुंच जाता है, परंतु तुम सुमेरु पर्वत की भांति वहां कभी नहीं पहुंच सकते अर्थात् तुम सुमेरु पर्वत की बराबरी कभी नहीं कर सकते। ऋषि मुनि नारद की इस बात को सुन पर्वतराज विंध्याचल अत्यधिक विचलित हो गए और स्वयं को ऊंचा साबित करने के लिए सोच-विचार करने लगे। पर्वतराज विंध्याचल को ऋषि मुनि नारद की यह बात अत्यधिक चुभ गई और पर्वतराज विंध्याचल बहुत ही परेशान हो गए, क्योंकि यहां उनके अहंकार की पराजय हो रही थी।

पर्वतराज विंध्याचल ने अपने आप को सबसे ऊंचा बनाने की कामना के चलते भगवान शिव की पूजा करना प्रारंभ किया और उन्होंने लगभग 6 महीने तक भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की। पर्वत राज विंध्याचल की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और भगवान शिव ने पर्वतराज विंध्याचल से वरदान मांगने को कहा। इस पर पर्वतराज विंध्याचल ने कहा कि ‘हे! प्रभु मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें और मैं जिस भी कार्य को आरंभ करूं वह सिद्ध हो।’ इस प्रकार विंध्याचल पर्वत ने यह वरदान प्राप्त किया।

भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के पश्चात् विंध्याचल पर्वत ने अपना आकार बढ़ाना प्रारंभ किया। विंध्याचल पर्वत का आकार बढ़ने के कारण विंध्याचल पर्वत के मार्ग से जाने वाले भक्तगणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। वरदान प्राप्त करने के पश्चात् अहंकारवश विंध्याचल पर्वत अपना आकार बढ़ाना नहीं रोक रहे थे। इसके पश्चात् सभी भक्त परेशान होकर ऋषि अगस्त के पास गए और इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना की। तत्पश्चात् ऋषि अगस्त ने विंध्याचल पर्वत की यात्रा की तथा विंध्याचल पर्वत को अपने वापस लौट आने तक रुकने की प्रतीक्षा करने को कहा और उसके बाद ऋषि अगस्त विंध्याचल पर्वत पर वापस नहीं गए। इसी कारण विंध्याचल पर्वत अपनी अंतिम ऊंचाई तक रुका हुआ है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े रोचक तथ्य

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग अपनी महानता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जिस द्वीप पर बसा हुआ है, उसकी बनावट और रचना प्रत्येक भक्त को आश्चर्यचकित कर देती है। इस द्वीप पर पर्वतों और नर्मदा नदी के संगम का अनूठा मनोरम दृश्य देखने को मिलता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े कई रहस्य और रोचक तथ्य हैं। आईए जानते हैं इन रोचक तथ्यों के बारे में…

  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दो भागों में विभाजित है। दोनों ही एक दूसरे के निकट स्थित हैं। दोनों ही भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थान है। मुख्य भूमि पर अमरेश्वर ज्योतिर्लिंग और एक द्वीप पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है।
  • ऐसा कहा जाता है की मांधाता द्वीप, जिस पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है, पवित्र ओम चिन्ह (ॐ) के आकार का है।
  • ओंकारेश्वर मंदिर के भीतर पंचमुखी गणेश और अन्नपूर्णा माता का मंदिर है।
  •  ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा और कावेरी के संगम स्थल पर स्थित है, जहां नर्मदा और कावेरी नदी मिलती हैं। इस स्थल का अत्यधिक महत्व है।
  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्वयंभू हैं अर्थात इनकी प्रतिमा अपने आप बन गई थी, इस कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
  • मंदिर के चारों ओर एक परिक्रमा मार्ग है जिसकी लोग परिक्रमा करते हैं। यह स्थल भक्ति और आध्यात्मिक अनुभव के लिए प्रसिद्ध है।
  • ओंकारेश्वर उज्जैन से भी जुड़ा हुआ है, महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन से यात्रा करते हुए लोग ओंकारेश्वर आते हैं।
  • यहां हर साल भक्ति सम्मेलन और पूजा अर्चना का आयोजन होता है। इस समय यहां भक्तों की संख्या बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती है।
  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करके मनुष्य अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और शांति पाता है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी विशेषताएं

ओंकारेश्वर मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह मंदिर प्राचीन नागर शैली में बनाया गया है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर में एक पांच मंजिला इमारत है जिसके भूतल पर भगवान ओंकारेश्वर, प्रथम मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर, दूसरी मंजिल पर भगवान सिद्धनाथ, तीसरी मंजिल पर भगवान गुप्तेश्वर तथा चौथी मंजिल पर भगवान ध्वजेश्वर मंदिर हैं। मंदिर में कई ऊंचे-ऊंचे शिखर हैं। इस मंदिर की प्रमुख विशेषता इसका विशाल शिखर और जटिल नक्काशी भी है। एक विशाल प्रार्थना कक्ष भी है, जिसके सहारे लगभग 60 विशाल नक्काशीदार पत्थर के खंभे बने हुए हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे ?

हवाई यात्रा द्वारा

ओंकारेश्वर मंदिर के सबसे समीप इंदौर हवाई अड्डा है जो कि लगभग 77 किलोमीटर दूर है। यह हवाई अड्डा पूरे भारत से जुड़ा हुआ है तथा दूसरा उज्जैन हवाई अड्डा है जो 133 किलोमीटर दूर है।

रेल यात्रा द्वारा (वर्तमान में बंद है)

अगर आप रेल से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं तो ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के सबसे निकट रतलाम-इंदौर-खंडवा लाइन पर स्थित ओंकारेश्वर रेलवे स्टेशन है जो ओंकारेश्वर मंदिर से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

सड़क मार्ग द्वारा

यदि आप सड़क मार्ग से ओंकारेश्वर मंदिर जा रहे हैं तो राज्य परिवहन निगम की बसें आसानी से ओंकारेश्वर मंदिर तक पहुंचा देंगी तथा अपने वाहन से जाने पर ओंकारेश्वर मंदिर के लिए इंदौर-खंडवा-उज्जैन से जुड़ी हुई सड़के डबल रोड और व्यवस्थित हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

ओंकारेश्वर में कौन-कौन सी नदियों का संगम है ?

ओंकारेश्वर मंदिर एक द्वीप पर स्थित है। ओंकारेश्वर मंदिर के एक तरफ नर्मदा नदी तथा दूसरी तरफ कावेरी नदी बहती है अर्थात ओंकारेश्वर में कावेरी तथा नर्मदा दो नदियों का संगम है।

ओंकारेश्वर मंदिर की क्या मान्यता है ?

ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान शिवलिंग भगवान शिव का प्रतिरूप है। मान्यता है कि भगवान शिव यहां पर स्वयं प्रकट हुए थे इसलिए यहां पर स्थापित शिवलिंग को ‘स्वयंभू’ कहा जाता है यानी ‘वह जो स्वयं प्रकट हुआ हो’।

ओंकारेश्वर मंदिर तथा महाकालेश्वर मंदिर के बीच की दूरी कितनी है ?

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मांधाता पर्वत पर विराजमान ओंकारेश्वर मंदिर तथा उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के बीच की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है।

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