Mahashivratri ki Katha : महाशिवरात्रि का त्यौहार भारतवर्ष में बड़े ही हर्षोल्लास तथा धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सभी मंदिरों में महाशिवरात्रि पर्व का आयोजन होता है। महाशिवरात्रि के दिन सभी मंदिरों को रंग-बिरंगे फूलों तथा झालरों से सजाया जाता है। भक्तगण इस दिवस उपवास रखते हैं तथा भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव के सभी मंदिरों में अत्यंत भीड़ रहती है। भक्त उनका जलाभिषेक, दुग्ध अभिषेक तथा हवन पूजन भी करते हैं। इस दिन लोग महामृत्युंजय का पाठ भी करते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन उपवास करने से तथा संपूर्ण रात्रि भगवान शिव का भजन करने से मनुष्य का जीवन अत्यंत सुखमय तथा योग की चरम सीमा पर पहुंच जाता है। इस दिन मनुष्य की ऊर्जा प्रकृति के सहयोग से अपने चरम पर होती है। प्रकृति भी इस रात्रि को मनुष्य को अपनी ऊर्जा की चरम सीमा तक पहुंचने में सहयोग प्रदान करती है। महाशिवरात्रि के व्रत की एक प्रसिद्ध कथा भी है, जो अत्यंत प्रचलित है। महाशिवरात्रि व्रत कथा का वर्णन निम्न है-
Mahashivratri ki Katha
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बहुत समय पहले की बात है, एक शिकारी शिकार करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था और शिकारी का नाम चित्रभानु था। उस शिकारी पर एक साहूकार का कर्ज भी था, जिसे वह चुका नहीं पा रहा था। एक दिवस उस साहूकार ने शिकारी को बंदी बना लिया, सहयोगवश उस दिन शिवरात्रि का दिन भी था। संपूर्ण दिन शिकारी भूखा प्यासा बना रहा तथा भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा। शाम होने पर साहूकार ने चित्रभानु को छोड़ दिया तथा एक दिन की मोहलत दी और कहा कि मुझे मेरा सारा धन वापस चाहिए।
शिकारी हताश और निराश होकर वहां से जंगल की ओर चला गया क्योंकि वह दिन भर भूखा था तथा उसका परिवार भी भूखा रहा होगा, इसलिए वह अपने परिवार के लिए भोजन प्राप्त करने को जंगल में शिकार करने के लिए चला गया। शिकार ढूंढते-ढूंढते रात हो गई। शिकार देखने के लिए वह एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी मौजूद था, जिस पर उस शिकारी द्वारा तोड़े गए पत्ते शिवलिंग पर जा गिरे।
रात के समय पानी पीने के लिए तालाब के किनारे एक हिरनी आई। यह देखकर वह प्रसन्न हो गया और उसने शिकार करने के लिए अपना तीर कमान पर चढ़ा लिया। हिरनी ने यह देखा तो वह चित्रभानु से जीवनदान देने की विनती करने लगी और कहा कि “मैं इस समय गर्भवती हूं, मैं शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवन की हत्या कर दोगे, जो सही नहीं है। मैं बच्चों को जन्म देकर तुरंत ही तुम्हारे पास चली आऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।” शिकारी ने हिरनी को जाने दिया। इस दौरान कुछ बेलपत्र भगवान शिव के शिवलिंग के ऊपर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने प्रथम प्रहर की पूजा कर ली।
कुछ समय पश्चात् एक दूसरी हिरनी उधर से निकली और शिकारी ने तुरंत अपना तीर कमान पर चढ़ा लिया। हिरनी ने यह देखा तो वह विनम्रतापूर्वक शिकारी से बोली कि “मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत हुई हूं, मैं एक कामातुर हिरनी हूं और अपने प्रिय की तलाश में घूम रही हूं। मुझे अपने पति से मिल लेने दो उसके पश्चात् मैं वापस आ जाऊंगी। शिकारी ने हिरनी को जाने दिया। इस दौरान भी कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरीं, जिससे उसकी एक और प्रहर की पूजा हो गई।
कुछ समय पश्चात् एक और हिरनी अपने बच्चों के साथ आई। फिर से शिकारी ने अपना तीर कमान पर चढ़ा लिया। यह देखते ही हिरनी ने उससे विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की कि “मुझे जीवनदान दे दें, जिससे मैं अपने बच्चों को उनके पिता के पास छोड़ दूं और मैं वचन देती हूं कि यह कार्य करने के पश्चात् मैं वापस आ जाऊंगी। यह देखकर शिकारी ने उसे भी जाने दिया और इस प्रकार कुछ बेलपत्र शिवलिंग के ऊपर गिरे तथा एक और प्रहर की पूजा हो गई।
शिकारी ने निश्चय किया कि इस बार वह शिकार अवश्य करेगा। कुछ समय पश्चात् वहां एक हिरन आया। हिरण को देखकर शिकारी ने तीर कमान पर चढ़ा लिया। हिरण ने यह देखा तो कहा कि “यदि मुझसे पहले यहां से तीन हिरनी अपने बच्चों के साथ निकल चुकी हैं। यदि तुमने उन्हें मार दिया है तो उनके वियोग में जी कर क्या करूंगा? तुम मुझे भी मार दो और यदि उन्हें जाने दिया है तो मुझे भी जाने दो। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि उनसे मिलने के पश्चात् मैं यहां वापस लौट आऊंगा।” हिरण की बातें सुनकर शिकारी के मन में पूरी रात का घटनाक्रम सामने आ गया और उसने हिरण को बताया।
हिरण ने यह सब सुनकर कहा कि वे तीनों प्रतिज्ञावध हैं। यदि वे मुझे नहीं मिलेंगी तो वह अपनी मृत्यु धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। जैसे उन्हें जाने दिया है, वैसे ही मुझे जाने दो। मैं जल्द ही अपने परिवार समेत यहां आ जाऊंगा। चित्रभानु का यह सब देखकर मन निर्मल और पवित्र हो चुका था क्योंकि उसने शिवरात्रि का व्रत तथा पूजा संपूर्ण कर ली थी। जिससे उसके अंदर भक्ति भावना जागृत हो गई थी तो उसने उस हिरण को भी जाने दिया। कुछ समय पश्चात् उस हिरण का पूरा परिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया।
चित्रभानू ने उन जीवों की सत्यता, प्रेमभावना, प्रतिज्ञा को देखकर आत्मग्लानि से परिपूर्ण हो गया और उसने उस हिरण तथा उसके परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में ही चित्रभानू ने भगवान शिव की आराधना की तथा संपूर्ण रात्रि उनकी पूजा अर्चना भी की, जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब उसकी मृत्यु काल आया तो यमदूत उसे सीधे शिवलोक ले गए और और चित्रभानु का जीवन सफल हो गया।