महाकालेश्वर मंदिर का रहस्य, जिसे जान आप रह जाएंगे भौचक्के

महाकालेश्वर मंदिर देवताओं में सर्वोच्च कहे जाने वाले भगवान शिव को समर्पित एक विश्व प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान शिव का यह मंदिर कई रहस्य और पौराणिक कथाओं का एक जीवंत प्रबंध दर्शाता है। इस मंदिर की वास्तुकला, आध्यात्मिकता अत्यंत थी ही रोचक तथा भव्य है। इस मंदिर में प्रतिदिन देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। महाकालेश्वर मंदिर भक्तों तथा पर्यटकों के लिए समान रूप से आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर का इतिहास तथा पौराणिक कथाएं मनुष्यों को अत्यंत ही अचंभित करती है। आज हम महाकालेश्वर मंदिर तथा उससे उससे जुड़े रहस्यों के बारे में जाने जानेंगे…

महाकालेश्वर मंदिर

महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक विश्व प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। महाकालेश्वर मंदिर में विराजमान ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के पृथ्वी पर प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाकाल का अर्थ है – “कालों के काल” अर्थात् वे जो समय से परे हैं या जो काल के बंधन से मुक्त हैं। ज्योतिर्लिंग का अर्थ है – प्रकाश का स्तंभ अर्थात् जिसका ना कोई आरंभ हो ना कोई अंत। महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से दर्शन के लिए आते हैं और यहां पर भक्तों की भीड़ लगे रहना एक आम बात है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भक्तों के हृदय में एक विशेष स्थान रखता है तथा मंदिर से भक्तों के विश्वास और आस्था का अटूट संबंध है।

महाकालेश्वर मंदिर का रहस्य

महाकालेश्वर मंदिर का रहस्य

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महाकालेश्वर मंदिर कई रहस्य और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। महाकालेश्वर मंदिर के रहस्य भक्तों को अचंभित तथा उत्साह से पूर्ण कर देते हैं। मंदिर कई ऐसे राशियों को समेटे हुए हैं जिसे वैज्ञानिक भी अचंभे की दृष्टि से देखते हैं। मंदिर से जुड़े ये रहस्य मंदिर को अत्यंत विशेष बनाते हैं। आईए जानते हैं इन अनसुने रहस्यों के बारे में –

  • महाकालेश्वर मंदिर में ज्योतिर्लिंग एक स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जिसका तात्पर्य है- ‘स्वयं से प्रकट ज्योतिर्लिंग’। माना जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग धरती फाड़कर स्वयं ही प्रकट हुआ था।
  • महाकालेश्वर मंदिर में ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है। इसका तात्पर्य यह है कि भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का मुख दक्षिण दिशा में है।
  • महाकालेश्वर बाबा को ‘मृत्यु का देवता’ भी कहते हैं अर्थात् इनकी पूजा करने से भक्त अकाल मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।
  • बाबा महाकाल की भस्म आरती एक प्रसिद्ध अनुष्ठान है, जिसमें ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती चिता की भस्म से हुआ करती थी, परंतु अब वर्तमान में गाय के गोबर की उपलों से बनी राख से  होती है।
  • महाकालेश्वर मंदिर के तीन तल हैं, जिसमें से भूतल पर ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ विद्यमान है, प्रथम तल पर ओंकारेश्वर शिवलिंग तथा द्वितीय तल पर नागचंद्रेश्वर शिवलिंग विद्यमान हैं।
  • नागचंदेश्वर शिवलिंग के दर्शन के लिए वर्ष में केवल एक दिन – ‘नाग पंचमी के दिन’ कपाट खोले जाते हैं और बाकी के दिनों में यह मंदिर बंद रहता है।
  • मंदिर परिसर में एक कोटि तीर्थ नामक कुंड बना हुआ है जिसका जल अत्यंत दिव्य और पवित्र माना जाता है।
  • महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से भक्तों को अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा मिल जाता है।
  • महाकालेश्वर मंदिर का शिखर पांच स्तरीय बना हुआ है।
  • कहा जाता है की उज्जैन में कोई भी राजा या मंत्री रात्रि को नहीं ठहरता क्योंकि उज्जैन के राजा एकमात्र बाबा महाकाल हैं।
  • महाकालेश्वर मंदिर के शिखर से पृथ्वी की कर्क रेखा गुजरती है।
  • महाकालेश्वर मंदिर को पृथ्वी की नाभि भी कहा जाता है।
  • महाकालेश्वर मंदिर के ज्योतिर्लिंग को वैज्ञानिक भी ऊर्जा का केंद्र मानते हैं। उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर निर्माण एक ऐसे सौर स्थल पर किया गया है जहां पर सूर्य की ऊर्जा का उपयोग होता है,जो मंदिर की शांति और ध्यान को बढ़ाता है।
  • महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा प्रमुख ज्योतिर्लिंग है।
  • महाकालेश्वर मंदिर 7 मोक्ष तीर्थ स्थलों में से एक है।
महाकालेश्वर मंदिर का रहस्य

महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास

पुराणों के अनुसार महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण स्वयं जगतपिता ब्रह्मा ने करवाया था। माना जाता है की छठी शताब्दी में उज्जैन के राजा चंद्रप्रद्योत के पुत्र कुमार सेन ने महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था और बाद में 12वीं शताब्दी में राजा उदयादित्य तथा राजा नरवर्मन ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। अंत में पेशवा बाजीराव प्रथम के अधीन मराठा कमांडर राणोजी शिंदे ने 18वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तत्पश्चात् देवस्थान नामक ट्रस्ट ने मंदिर की जिम्मेदारी संभाली और 1947 में भारत की आजादी के बाद से यह ट्रस्ट ही मंदिर प्रशासक के रूप में कार्य कर रहा है।

महाकालेश्वर मंदिर की कहानी

महाकालेश्वर मंदिर से कई पौराणिक तथा रोचक कहानी जुड़ी हुई हैं, जिनमें से एक अत्यंत रोचक और प्रसिद्ध कहानी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार उज्जैन के राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे। एक बार उज्जैन के राजा चंद्रसेन भगवान शिव की भक्ति में लगे हुए थे। उनकी प्रार्थना के दौरान ही श्रीखर नाम का एक युवक उनके साथ प्रार्थना करने की मांग करने लगा लेकिन राजा ने उन्हें मना कर दिया और शहर के बाहरी इलाके में भेज दिया। उस युवक ने वहां जाकर देखा कि उज्जैन के दुश्मन शासक राजा रिपुदमन और सिंहादित्य एक दुशासन नामक राक्षस की सहायता से उज्जैन पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे हैं।

श्रीखर  भगवान शिव से उज्जैन नगर की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा और उसकी इस प्रार्थना में वृद्धि नामक एक पुजारी भी शामिल हो गया। अभी यह सभी प्रार्थना करते रहे और राक्षसों ने उज्जैन नगर पर हमला प्रारंभ कर दिया और वे उज्जैन नगर को जीतने के नजदीक ही पहुंच चुके थे। इस परिस्थिति में भी भक्तों द्वारा भगवान शिव की प्रार्थना में कोई कमी नहीं आने दी। इस कारण भक्तों की प्रार्थना में गंभीरता को देखकर भगवान शिव उन्हें बचाने के लिए महाकाल के रूप में प्रकट हुए तथा उज्जैन नगर को बचा लिया। तभी से अपने भक्तों की प्रार्थना पर भगवान शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में उज्जैन में निवास करने लगे।

महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन

महाकालेश्वर मंदिर में सुबह प्रातः 4:00 बजे से रात्रि 11:00 बजे तक दर्शन होते हैं। इस समय के बीच मंदिर खुला रहता है तथा इस समय के दौरान ही सुबह, दोपहर और शाम की आरती सहित विभिन्न आयोजन होते हैं। यह मंदिर अन्य मंदिरों की तरह दोपहर में बंद नहीं होता है। यहां 4:00 बजे से 11:00 बजे तक निरंतर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए मंदिर के द्वार खुले रहते हैं।

रीति पुजा कार्यक्रम

रीति पुजा कार्यक्रम

धार्मिक संस्कार से तक
दर्शन 4:00 AM 11:00 PM
भस्म आरती 4:00 AM 6:00 AM
सुबह पूजा 7:00 AM 7:30 AM
शाम पूजा 5:00 PM 5:30 PM
श्री महाकाल आरती 7:00 PM 7:30 PM

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भस्म आरती बुकिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती विश्व भर में प्रख्यात है। भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती प्रतिदिन प्रात 4:00 बजे होती है। यह भस्म आरती प्राचीन समय में चिता की राख से होती थी, परंतु वर्तमान समय में गाय के गोबर के उपलों की राख से की जाती है।

इस लिंक के द्वारा आप महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भस्म आरती की बुकिंग कर सकते हैं –

भस्म आरती बुकिंग

उज्जैन रेलवे स्टेशन से महाकालेश्वर मंदिर की दूरी

उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर आप देश के विभिन्न प्रमुख रेलवे स्टेशनों से उज्जैन रेलवे स्टेशन तक आ सकते हैं। उज्जैन रेलवे स्टेशन से आप लोकल यातायात साधनों से उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न –

Q.महाकालेश्वर मंदिर किस नदी के किनारे स्थित है?

Ans.महाकालेश्वर मंदिर पावन क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है।

Q.क्या महाकालेश्वर मंदिर के लिए ऑनलाइन बुकिंग करना अनिवार्य है?

Ans.महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए आपको ऑनलाइन बुकिंग करना अनिवार्य नहीं है। आप बिना बुकिंग के भी दर्शन कर सकते हैं परंतु VIP दर्शन के लिए आपको ढाई सौ रुपए का शुल्क देना पड़ता है।

Q.महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण किसने करवाया?

Ans.पौराणिक कथाओं के अनुसार उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण भगवान ब्रह्मा के द्वारा किया गया था। माना जाता है कि परमार कल में कई आक्रमणकरियों ने मंदिर को नष्ट कर दिया था, उसके पश्चात् राजा उदयादित्य तथा नववर्मन ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था।

Q.महाकालेश्वर मंदिर कहां है?

Ans. महाकालेश्वर मंदिर भारतवर्ष के मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में पावन क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है।

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