हिंदू धर्म में भगवान शिव का विशेष महत्व है। भगवान शिव को देवों का देव महादेव भी कहते हैं। पृथ्वी पर भगवान शिव के कई शिवलिंग विद्यमान है जिनमें से एक हैं बाबा अमरनाथ। बाबा अमरनाथ की गुफा की यात्रा करना एक भक्त के लिए अद्वितीय और महत्त्वपूर्ण अनुभव है। प्रति वर्ष भगवान शिव के इस धाम “बाबा अमरनाथ” के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु अनेक मुश्किलें और ऊँचाइयों को पार करते हैं।
बाबा अमरनाथ का मंदिर एक अद्वितीय स्थल है जो न केवल धार्मिक रुप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां होने वाला चमत्कार भी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। बाबा अमरनाथ का मंदिर जम्मू और कश्मीर में स्थित है जहां भागवान शिव के शिवलिंग का आकार बढ़ता और घटता रहता है। बाबा अमरनाथ का मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो श्रद्धालुओं को भगवान शिव के दर्शन के लिए लालायित करता है। भगवान शिव का यह मंदिर गुफा के रूप में स्थित है। बाबा अमरनाथ का मंदिर जुलाई से अगस्त के बीच खुलता है। यहां शिवलिंग का आकार बढ़ता और घटता रहता है जो अत्यंत ही अद्भुत दृश्य प्रदर्शित होता है।
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बाबा अमरनाथ मंदिर
बाबा अमरनाथ मंदिर में विद्यमान शिवलिंग पृथ्वी पर विद्यमान भगवान शिव के अनेकों शिवलिंगों में से एक है। इस शिवलिंग का अपना एक विशेष महत्व है। अमरनाथ गुफा में विद्यमान शिवलिंग को ‘अमरेश्वर’ कहा जाता है। यह गुफा भगवान शिव का एक प्राचीन धार्मिक स्थल है जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। इस गुफा में श्रद्धालु भगवान शिव की अनुपम व अद्भुत शिवलिंग के दर्शन करने के लिए आते हैं। भगवान शिव का यह शिवलिंग बर्फ से बना हुआ है। आज के समय में कई लोग इन्हें ‘बाबा बर्फानी’ भी कहते हैं।
बाबा अमरनाथ मंदिर एक गुफा में स्थित है। यह गुफा भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के श्रीनगर में हिमालय की पहाड़ियों में श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर दूर स्थित है। इस गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 3888 मीटर है। यह गुफा लगभग 150 फीट ऊंची और 90 फीट लंबी है। बाबा अमरनाथ की यात्रा के दौरान गुफा तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं, पहला रास्ता पहलगाम से होकर जाता है तथा दूसरा रास्ता सोनमर्ग बालटाल से होकर जाता है।
अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए आपको देश के किसी भी क्षेत्र से सर्वप्रथम पहलगाम या फिर बालटाल पहुंचना होगा तत्पश्चात् इन क्षेत्रों से आपको अमरनाथ गुफा की यात्रा के लिए पैदल निकलना होगा। अमरनाथ गुफा की यात्रा हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होती है और यह यात्रा भगवान शिव के प्रिय मास श्रावण मास में पूरे माह तक चलती है। मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में सर्वप्रथम श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन अमरनाथ गुफा की यात्रा करने का विशेष महत्व है।
कैसे प्रकट होते हैं शिवलिंग
भगवान शिव के शिवलिंग रूप कई चमत्कारों से उत्पन्न हुए हैं। इनमें से कई शिवलिंग स्वयंभू रूप में विद्यमान है। स्वयंभू का अर्थ है- “स्वयं ही उत्पन्न होना” अर्थात् भगवान शिव के कई शिवलिंग स्वयं ही पृथ्वी पर उत्पन्न हुए हैं। अमरनाथ गुफा में भी भगवान शिव स्वयंभू रूप में उपस्थित हैं। भगवान शिव का यह शिवलिंग बर्फ से बना हुआ है।
अमरनाथ गुफा की परिधि लगभग 150 फीट है। गुफा के ऊपर से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। गुफा के मध्य में एक ऐसी जगह है जहां पर पानी की बूंद टपकने पर शिवलिंग बनता है। कभी-कभी यह शिवलिंग 20 से 22 फीट ऊंचा भी हो जाता है। अमरनाथ गुफा से टपकने वाली पानी की बूंदे मध्य में गिरते ही ठोस बर्फ का आकार ले लेती हैं तथा गुफा में अन्य जगह टपकी हुई पानी की बूंदे शुष्क बर्फ के रूप में फैल जाती हैं जिसे हाथ में लेते ही यह शुष्क बर्फ बिखर जाती है। चंद्रमा की कलाओं के अनुसार ही शिवलिंग का उदय होता है और कलाओं के अनुसार ही शिवलिंग लुप्त हो जाते हैं।
बाबा अमरनाथ की शिवलिंग का क्यों घटता-बढ़ता रहता है आकार
बाबा अमरनाथ का यह शिवलिंग बर्फ से बना हुआ है, जो स्वयं ही प्रकट होता है और स्वयं ही लुप्त हो जाता है। बर्फ से बना यह शिवलिंग अमरनाथ गुफा की चट्टानों से टपकती हुई पानी की बूंदों से बनता है। भगवान शिव का यह बर्फ से बना हुआ शिवलिंग चंद्रमा की कलाओं पर आधारित है अर्थात् जिस तरह से चंद्रमा का 15 दिनों तक आकार बढ़ता है और अगले 15 दिनों तक आकर घटता है, ठीक उसी प्रकार इस शिवलिंग का आकार भी बढ़ता-घटता है। भगवान शिव के इस शिवलिंग का आकार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक पूर्ण हो जाता है और उसके बाद आने वाली अमावस्या तक आकर में काफी छोटा हो जाता है।
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बाबा अमरनाथ की गुफा की पौराणिक कथा
अमरनाथ गुफा की यात्रा करना भक्तों के लिए बहुत शुभ माना गया है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। मान्यता है कि इस गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमृत्व तथा मोक्ष के रहस्य के बारे में बताया था, इसीलिए इस गुफा को अमरनाथ की गुफा कहते हैं। भगवान शिव ने माता पार्वती को अमृत्व का रहस्य बताने के लिए इस गुफा को ही क्यों चुना?, इसके पीछे भी एक बड़ा रहस्य है। भगवान शिव माता पार्वती को जो अमृत और मोक्ष का रहस्य बताना चाहते थे वह अति गोपनीय था, इसलिए भगवान शिव ऐसे स्थान की खोज में निकल पड़े जहां पर कोई भी प्राणी मौजूद न हो, तब उन्हें यह गुफा मिली।
यह रहस्य इतना गोपनीय था कि भगवान शिव ने अपने पुत्रों, गणों तथा अपने प्रिय भक्त नंदी को भी पीछे छोड़ दिया था। यहां तक की इस गुफा में प्रवेश करने से पहले भगवान शिव ने पंच तत्वों का भी त्याग कर दिया था। भगवान शिव द्वारा इन सभी तत्वों तथा अपने प्रिय जनों का त्याग करने के पश्चात् माता पार्वती को यह अमरता और मोक्ष का रहस्य बताने के लिए इस गुफा को चुना, इससे यह पता चलता है कि यह रहस्य कितना गोपनीय था। अगर यह रहस्य सभी लोगों को ज्ञात हो जाता तो प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न हो जाता इसलिए भगवान शिव ने प्रकृति को संतुलित बनाए रखने के लिए इस रहस्य से सभी को दूर रखा।
भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरता तथा मोक्ष का रहस्य बताने के के लिए इस गुफा में प्रवेश किया तथा यह सुनिश्चित किया कि इस गुफा में कोई अन्य प्राणी मौजूद न हो। भगवान शिव ने माता पार्वती को कथा सुनने से पूर्व उनसे कहा कि “जब मैं यह कथा सुनाऊं तो आप हुंकार भरते रहना जिससे मैं आपको निरंतर कथा सुनाता रहूं।” भगवान शिव ने अमृत्व की कथा को सुनना प्रारंभ किया और देवी पार्वती हुंकार भरती रहीं। एक समय ऐसा आया की माता पार्वती को निद्रा आ गई और उन्होंने हुंकार बना बंद कर दिया, लेकिन तत्पश्चात् भी भगवान शिव को हुंकार की आवाज सुनाई पड़ती रही।
कुछ समय पश्चात् भगवान शिव ने इस हुंकार पर गौर किया तो उन्हें समझ आया कि यह हुंकार किसी और की है, तब उन्हें ज्ञात हुआ की एक शुक नामक पक्षी गुफा में मौजूद था, जो माता पार्वती के हुंकार बंद करने के पश्चात् से लगातार हुंकार भर रहा था। यह देखकर भगवान शिव उस शुक नामक तोते को मारने के लिए दौड़ पड़े। सुख नामक तोता भगवान शिव से अमरता की कथा सुनने के पश्चात् अत्यंत ही ज्ञानी हो गया था, इसलिए वह अपने ज्ञान के फलस्वरुप माया का प्रयोग करके महर्षि वेदव्यास की पत्नी के गर्भ में जा छुपा। आश्चर्य की बात यह है कि महर्षि वेदव्यास की पत्नी के गर्भ में यह 12 वर्षों तक रहा।
यह देखकर भगवान विष्णु ने शुक तोते से कहा कि ‘अब बाहर आ जाओ’ तत्पश्चात् शुक तोते ने बाहर आने से मना कर दिया और कहा कि इस संसार में आपकी माया फैली हुई है। मैं इस माया के वश में नहीं आना चाहता। तब भगवान विष्णु ने उन्हें यह वचन दिया कि “इस संसार में आने पर मेरी माया तुम्हें तनिक भी प्रभावित नहीं करेगी।” तब जाकर सुख तोते ने महर्षि वेदव्यास के अनयोनित पुत्र ‘शुकदेव’ के रूप में जन्म लिया।
बाबा अमरनाथ की गुफा का पौराणिक इतिहास
बाबा अमरनाथ की गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमृत्व की कथा सुनाई थी। इसके पश्चात् एक ऋषि के द्वारा इस गुफा को सर्वप्रथम देखा गया। पौराणिक मान्यता है कि एक समय कश्मीर की घाटी जल में पूर्णता डूब गई थी और कश्मीर घाटी ने एक विशाल झील का आकार ले लिया था। तब ऋषि कश्यप ने इस समस्या का समाधान करने के लिए घाटी में भरे हुए जल को अनेक नदियों तथा छोटे-छोटे जल स्रोतों के रूप में बहा दिया।
इसके पश्चात ऋषि भृगु ने हिमालय पर्वत की यात्रा करने का विचार किया और वह हिमालय पर्वत की यात्रा पर निकल पड़े। ऋषि भृगु की यात्रा के दौरान हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में जल का स्तर काफी कम हो गया था। उसी समय ऋषि भृगु ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और वहां बर्फ से बने शिवलिंग को देखा। तभी से ही यह स्थान भगवान शिव की आराधना और भक्ति के लिए जाना जाने लगा और यह प्रमुख देवस्थान बन गया।
कैसे हुई थी बाबा अमरनाथ गुफा की खोज
कश्मीर की घाटियों में बाबा अमरनाथ की गुफा की खोज एक रहस्य बना हुआ है। बाबा अमरनाथ की गुफा की खोज के लिए एक प्रचलित कहानी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि लगभग 15वीं शताब्दी में बूटा मलिक नामक चरवाहे द्वारा अमरनाथ गुफा की खोज की गई। एक बार बूटा मलिक अपनी बकरियों को चराते हुए दूर निकल आया था, यहां उसे एक साधु मिला जिसने उसको सर्दी से बचने के लिए जलते कोयले से भरी एक कांगड़ी दी।
बूटा मलिक वापस अपने घर पहुंचा, जब उसने उस कोयले से भरी कांगड़ी को देखा तो उसमें सोने के सिक्के भरे हुए थे। बूटा मालिक बहुत ही अचंभित और प्रसन्न हुआ। इसके बाद बूटा मलिक साधु को धन्यवाद देने के लिए वापस उसी स्थान पर गया तो उसने एक गुफा और गुफा के अंदर भगवान शिव के बर्फ के रूप में शिवलिंग को देखा। यह बात उसने वापस आकर अपने गांव वालों को बताई। यह बात गांव वालों के द्वारा तत्कालीन राजा के पास पहुंची और फिर बाबा अमरनाथ की गुफा तभी से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
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बाबा अमरनाथ की गुफा से जुड़े रहस्य
बाबा अमरनाथ की गुफा में भगवान शिव के शिवलिंग का पानी की बूंदों के द्वारा बर्फ के एक शिवलिंग का आकार लेना ही अपने आप में एक रहस्य है। यहां भगवान शिव का यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है और प्राकृतिक रूप से विलुप्त हो जाता है।
भगवान शिव का बर्फ से बना हुआ यह शिवलिंग चंद्रमा की कलाओं से संबंधित है। यह शिवलिंग चंद्रमा के आकार के साथ ही बढ़ता है और चंद्रमा के आकार के साथ ही घटता है।
अमरनाथ की गुफा के आसपास और भी कई चट्टानें और गुफाएं मौजूद हैं, जो बर्फ से ढकी रहती हैं। इन चट्टानों से भी पानी की बूंदे टपकती हैं लेकिन वहां पर यह पानी की बूंदे शिवलिंग का रूप नहीं लेती।
भगवान शिव ने माता पार्वती को इस गुफा में अमृत्व तथा मोक्ष की कथा सुनाई थी। वे चाहते थे कि यह कथा कोई और ना सुन सके इसलिए उन्होंने इस गुफा का चयन किया था। परंतु एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार यहां पर हिरण की खाल के नीचे कबूतर के अंडे थे। इन अंडों से कबूतर के एक जोड़े ने जन्म लिया था, चूंकि इन्होंने भगवान शिव की अमृत्व कथा सुन ली थी, इस
लिए यह कबूतर का जोड़ा अमर हो गया।
अमरनाथ की यात्रा के दौरान यह कबूतर का जोड़ा आज भी उस गुफा में दिखाई पड़ता है। आश्चर्यजनक बात है कि इस गुफा में यात्रा के लिए केवल 2 महीने का ही समय होता है। उसके पश्चात् यहां पर अत्यधिक ठंड पड़ती है लेकिन अभी तक इस गुफा में हर यात्रा के दौरान वह कबूतर का जोड़ा जीवित मिलता है।
बाबा अमरनाथ के दर्शन का महत्व
बाबा अमरनाथ के शिवलिंग के दर्शन करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमृत्व तथा मोक्ष की कथा सुनाई थी, इसलिए कश्मीर की घाटियों में बसे इस तीर्थ को ‘तीर्थों का तीर्थ’ कहा जाता है। इसी गुफा में भगवान शिव ने कई वर्षों तक रहकर तपस्या भी की थी। भगवान शिव के लिए कैलाश पर्वत, अमरनाथ, केदारनाथ, काशी और पशुपतिनाथ पवित्र और प्रमुख स्थान हैं। मान्यता है कि अमरनाथ की गुफा के दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है।
बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए कैसे पहुंचे
बाबा अमरनाथ की गुफा की यात्रा करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण है क्योंकि यह गुफा कश्मीर की घाटियों में स्थित है। कश्मीर के पहलगाम या फिर बालटाल से अमरनाथ गुफा के लिए भक्तों को पैदल ही जाना पड़ता है। अमरनाथ गुफा की यात्रा के लिए आपको ट्रेन, सड़क या किसी अन्य माध्यम से सर्वप्रथम पहलगाम या फिर बालटाल पहुंचना होगा। यहां से गुफा तक की यात्रा आप पैदल या हेलीकॉप्टर के जरिए पूरी कर सकते हैं । ज्यादातर भक्तगण इस यात्रा को पैदल ही पूरा करते हैं।
पहलगाम से अमरनाथ गुफा तक
पैदल
अमरनाथ गुफा की यात्रा करने के लिए पहलगाम बेस कैंप है। पहलगाम से अमरनाथ की गुफा लगभग 47 किलोमीटर दूर है। इस यात्रा को पैदल ही पूरा करने में आपको लगभग 3 से 5 दिन का समय लगेगा।
अमरनाथ गुफा की पैदल यात्रा करने पर आपको बेस कैंप के बाद चार पड़ाव मिलेंगे तत्पश्चात् अमरनाथ की गुफा के दर्शन होंगे। पहलगाम बेस कैंप से 16 किलोमीटर दूर पहला पड़ाव चंदनवारी पड़ेगा। इसके पश्चात यात्रा चुनौतीपूर्ण हो जाती है। अगला पड़ाव पिस्सू टॉप पड़ेगा जो चंदनवाड़ी से 3 किलोमीटर दूर है। इसके बाद अगले पड़ाव शेषनाग पर आप पहुंचते हैं जो पिस्सू टॉप से 9 किलोमीटर दूर है। शेषनाग के पश्चात् पंचतरणी आता है जो 14 किलोमीटर दूर है। पंचतरणी से 6 किलोमीटर और चलने पर आप अमरनाथ की गुफाओं तक पहुंच जाएंगे।
हेलीकॉप्टर
तीर्थ यात्री पहलगाम से पांचतारिणी तक हेलीकॉप्टर से यात्रा कर सकते हैं। इसके पश्चात यहां से टट्टू/पालकी या फिर पैदल ही गुफा तक की यात्रा कर सकते हैं।
बालटाल से अमरनाथ तक
पैदल
अमरनाथ गुफा की यात्रा करने के लिए बेस कैंप बालटाल है, जो अमरनाथ की गुफा से 14 किलोमीटर दूर है। यह मार्ग बुलंद रास्तों और सीधी चढ़ाई के कारण बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। बालटाल बेस कैंप से 2 किलोमीटर आगे चलने पर पहला पड़ाव डोमेल पड़ता है। डोमेल से 5 किलोमीटर और आगे जाने पर दूसरा पड़ाव बरारी मार्ग है। बरारी मार्ग से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी तय करने पर अगला पड़ाव संगम है। संगम से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय करने पर आप अमरनाथ की गुफा तक पहुंच जाएंगे।
हेलीकॉप्टर
तीर्थ यात्री बालटाल बेस कैंप से हेलीकॉप्टर के द्वारा पंचतरणी तक पहुंच सकते हैं। बालटाल से अमरनाथ की गुफा तक पहुंचने के लिए यह सबसे तेज और बहुत ही अच्छा तरीका है। पंचतरणी से गुफा मात्र 6 किलोमीटर दूर रह जाती है। पंचतरणी से गुफा तक जाने के लिए आप पैदल या फिर टट्टू/पालकी कर सकते हैं।