खाटू श्याम मंदिर हिंदुओं की आस्थाओं से जुड़ा हुआ एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में खाटू श्याम जी के सिर की पूजा की जाती है। खाटू श्याम मंदिर में देश-विदेश से लोग पूजा अर्चना के लिए आते हैं। बाबा खाटू श्याम को ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है। यहां आने वाले प्रत्येक भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है। इन्हें कलयुग के ‘श्याम’ भी कहा जाता है। खाटू श्याम जी का यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नामक गांव में स्थित है। यह मंदिर हिंदुओं के मध्य आगध आस्था का केंद्र है। इस मंदिर को ’सांदीपनि तीर्थ’ के रूप में भी जानते हैं। यह मंदिर भक्तों के बीच एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
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खाटू श्याम मंदिर, राजस्थान
राजस्थान राज्य के सीकर में खाटू नामक गांव में मौजूद खाटू श्याम मंदिर को राजस्थान के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है। खाटू श्याम मंदिर भगवान श्री कृष्ण के प्रमुख मंदिरों में से एक है। खाटू श्याम मंदिर अत्यधिक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में दूर- दूर से लोग पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। बाबा खाटू श्याम जी का मंदिर भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए प्रमुख पूजा का स्थल माना जाता है। बाबा खाटू श्याम को कई नामों से जाना जाता है और इन नामों के पीछे भी एक रहस्य छुपा हुआ है।बाबा खाटू श्याम को कलयुग का देवता कहा जाता है।
खाटू श्याम मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है। बाबा खाटू श्याम मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। एक बार राजस्थान के खाटू गांव में एक अद्भुत घटना घटी, जब एक स्थान पर खड़ी हुई तब गाय के थन से अपने आप दूध बहने लगा था। इस घटना को गांव वालों ने देखा तो इसे चमत्कार माना और उस स्थान पर उन्होंने खुदाई करना चालू किया। लोगों ने उसे स्थान पर खुदाई की तो वहां एक सिर मिला, अब लोगों के बीच यह दुविधा शुरू हो गई कि यह सिर किसका है और इस सिर का क्या किया जाए?
बाद में उन सभी गांव वालों ने सर्वसम्मति से इस सिर को एक गांव के पुजारी को सौंपने का फैसला किया। इसी बीच क्षेत्र के तत्कालीन शासक रूप सिंह को रात में एक स्वप्न आया और सपने में उस स्थान पर मंदिर बनाने को कहा गया। तब वहां के शासक रूप सिंह चौहान ने तत्काल ही उस स्थान पर मंदिर का निर्माण शुरू करवा दिया और वहां बाबा खाटू श्याम का सिर स्थापित कर दिया गया।
बाबा खाटू श्याम की पौराणिक कथा
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बाबा खाटू श्याम मंदिर का महत्व भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है। खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत काल से है। पौराणिक कथा के अनुसार खाटू श्याम जी का नाम ‘बर्बरीक’ था। बर्बरीक का संबंध पांडवों से था क्योंकि जब पांडव अज्ञातवास में थे, तब बलशाली पांडव भीम ने हिडिंबा नामक राक्षसी से विवाह किया था, जिससे भीम तथा हिडिंबा के एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम घटोत्कच्छ था । भीम के पुत्र घटोत्कच्छ अपने पिता के समान ही बलशाली तथा अपनी माता के समान मायावी भी थे। महान योद्धा ‘बर्बरीक’ घटोत्कच के पुत्र अर्थात् बलशाली भीम के पौत्र थे। बर्बरीक भी अपने दादा भीम तथा अपने पिता घटोत्कच्छ के समान ही बलशाली और शक्तिशाली थे।
बर्बरीक ने कठोर तपस्या करके अनेक सिद्धियां तथा तीन अभेद्य तीर प्राप्त किए। यह अभेद्य तीर अपने सारे लक्ष्य भेद कर वापस तरकश में आ जाते थे। बर्बरीक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों में से एक थे। पांडवों तथा कौरवों के बीच महाभारत का भीषण संग्राम छिड़ गया था। इस संग्राम में पांचो पांडवों के साथ भगवान श्री कृष्ण तथा कौरवों के साथ उनकी व भगवान श्री कृष्ण की अक्षुणी सेना युद्ध में शामिल थी। इस भयंकर युद्ध में बर्बरीक के पिता घटोत्कच्छ, अर्थात् भीम के पुत्र, ने भी भाग लिया था। उन्होंने इस युद्ध में पांडवों का पड़ला भारी कर दिया था। कौरव सेना के होते इस नुकसान को देखकर कौरवों ने घटोत्कच्छ के वध के लिए कर्ण को भेजा।
घटोत्कच्छ और कर्ण के बीच भीषण युद्ध हुआ। जब कर्ण और घटोत्कच्छ के बीच युद्ध चल रहा था तो कर्ण काफी कमजोर नजर आ रहे थे। तब कर्ण ने अपना आखिरी शस्त्र ‘दिव्यास्त्र’ का संधान घटोत्कच्छ पर किया। यह दिव्यास्त्र अर्जुन के लिए उन्होंने बचा कर रखा था, उस दिव्यास्त्र को उन्होंने घटोत्कच पर चलाया, जिससे घटोत्कच का वध हो गया। घटोत्कच्छ की मृत्यु के पश्चात् , जब यह समाचार घटोत्कच्छ के पुत्र को मिला तो घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता से युद्ध में शामिल होने की इच्छा प्रकट की और बर्बरीक की माता ने बर्बरीक को युद्ध में जाने की आज्ञा दे दी।
उनकी माता को लगा कि पांडवों का पक्ष कमजोर पड़ रहा है, तो बर्बरीक की माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम उस पक्ष की ओर से लड़ोगे जो हार रहा होगा। बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि वह हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे और यह वचन देकर बर्बरीक युद्ध के लिए चल दिए। भगवान श्री कृष्ण को पता चला कि बर्बरीक इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आ रहे हैं। जब भगवान श्री कृष्ण को यह बात पता चली कि बर्बरीक हारे हुए पक्ष की तरफ से लड़ेंगे तो भगवान श्री कृष्णा चिंतित हो गए। तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण का भेष रखकर बर्बरीक से मिलने के लिए चले गए।
भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को रास्ते में ही रोक लिया और बर्बरीक से पूछा की आप कहां जा रहे हैं? तब बर्बरीक ने बताया कि ‘मैं महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने जा रहा हूं।’ तब ब्राह्मण रूपी भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि ‘महाभारत का विशाल युद्ध चल रहा है। अभी तुम्हारी आयु भी बहुत छोटी है। तुम महाभारत में कैसे युद्ध कर पाओगे।’ तब बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को अपने तीन बाणों के बारे में बताते हुए कहा कि ‘मेरे पास तीन शक्तिशाली दिव्य बाण हैं, जो अपने लक्ष्य को आसानी से भेद कर वापस आ जाते हैं।’
तब भगवान श्री कृष्ण ने उनकी शक्ति का परिचय देने के लिए कहा और एक पीपल की पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘इस पीपल के वृक्ष में जितने भी पत्ते हैं, उन सभी पत्तों को एक बार में भेद कर दिखाओ। बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी भगवान कृष्ण की बात स्वीकार कर ली और अपना एक बाण लेकर उस पीपल के वृक्ष की ओर संधान कर दिया। उसके पश्चात् वह बाण उस पीपल के एक-एक करके सभी पत्तों को भेद रहा था। तभी एक पत्ता टूट कर भगवान श्री कृष्ण के पैरों के पास आ गिरा और भगवान श्री कृष्ण ने उसे अपने पैर के नीचे दबा लिया।
जब बाण सभी पत्तों को भेद चुका था तो वह जाकर भगवान श्री कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा ‘हे ब्राह्मण आप कृपया अपना पैर हटा लीजिए और बाण को अंतिम लक्ष्य संधान करने दीजिए। श्री कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया और बाण ने आखिरी पत्ता भी भेद दिया। यह देख भगवान श्री कृष्ण अत्यंत चिंतित हो गए विचार किया कि अगर यह बर्बरीक हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे, तब यदि कौरव पक्ष हार रहा होगा तो बर्बरीक कौरव की ओर से लड़ेंगे और जब पांडव पक्ष हारने लगेगा तो बर्बरीक पांडव की ओर से लड़ेंगे, ऐसे तो कौरव और पांडव दोनों ही खत्म हो जाएंगे।
इस समस्या का समाधान करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान मांगा, तब बर्बरीक ने कहा कि ‘हे ब्राह्मण आप दान में क्या चाहते हैं? हम आपको वही देंगे। भगवान श्री कृष्ण ने दान लेने से पहले बर्बरीक से एक वचन मांगा कि ‘मैं जो भी दान में मांगूंगा वह तुम मुझे प्रदान करोगे।’ बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को वचन दे दिया। ब्राह्मण रूपी भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश मांगा। यह सुनकर बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी भगवान श्री कृष्ण से कहा कि ‘हे ब्राह्मण! आप कोई साधारण ब्राह्मण तो लग नहीं रहे हैं। कृपया आप अपने वास्तविक रूप के दर्शन दें। तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण ने अपने वास्तविक रूप के दर्शन दिए।
बर्बरीक भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने के पश्चात अत्यंत प्रसन्न हुए और दान स्वरूप अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को प्रदान करनें से पहले कहा कि ‘हे प्रभु! मेरी इच्छा है कि मैं महाभारत के युद्ध को अपनी आंखों से स्वयं देखूं, तब भगवान श्री कृष्ण ने तथास्तु कहकर वरदान दिया और बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को प्रदान किया। इसके पश्चात् भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को एक ऊंची पर्वत की चोटी पर स्थापित कर दिया, जहां से बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध देखा।
आखिर कैसे बने बाबा खाटू श्याम,‘बर्बरीक से भगवान’
महाभारत के युद्ध में बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को दान के रूप में अपना शीश दिया था। बर्बरीक की इस दानवीरता को देखकर भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि ‘तुम जैसा दानी ना कोई हुआ है और ना कोई होगा।’
बर्बरीक के इस दान से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हें मेरे नाम से पूजा जाएगा अर्थात् भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपना नाम ‘श्याम’ दे दिया और कहा कि ‘जिस प्रकार तुम अपनी माता के वचनवश हारे हुए पक्ष को सहारा देने के लिए महाभारत के युद्ध में शामिल होने के लिए आए थे, ठीक उसी प्रकार कलयुग में मेरे भक्तों के लिए हारे का सहारा बनोगे।’ तभी से भीम पुत्र बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाने लगा और महान योद्धा बर्बरीक ‘बर्बरीक से भगवान’ हो गए।
खाटू श्याम मंदिर का महत्व
खाटू श्याम मंदिर में पहुंचने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। खाटू श्याम जी को भक्त बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटू का नरेश, शीश का दानी, खाटू श्याम आदि नाम से पुकारते हैं। बाबा खाटू श्याम को पूजने वाले श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों में है। इस मंदिर को भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न मंदिरों में से एक माना जाता है।
खाटू श्याम मंदिर कैसे पहुंचे
खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर के खाटू नामक गांव में स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन रिंगस पर उतरना होगा। यहां से खाटू श्याम मंदिर की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी या लोकल यातायात की मदद ले सकते हैं। अगर आप फ्लाइट से यात्रा कर रहे हैं, तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। यहां से मंदिर की दूरी लगभग 95 किलोमीटर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आप अपने वाहन का भी प्रयोग कर सकते हैं।