Dev Deepawali 2024 : वाराणसी में देव दीपावली पर गंगा घाट पर जले इतने दिए…

Dev Deepawali 2024: देव दीपावली भारत में मनाया जाने वाला एक धार्मिक त्योहार है जो सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि “देव दीपावली” अर्थात “देवताओं की दीपावली”। इसलिए हम देव दीपावली को देवताओं की दीपावली भी कहते हैं। देव दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार दीपावली जैसे बड़े त्यौहार के बाद आता है।

देव दीपावली का काशी से एक विशिष्ट जुड़ाव है इसलिए काशी, जिसे हम ‘वाराणसी’ के नाम से भी जानते हैं, में देव दीपावली का उत्सव बड़े ही धूमधाम व भव्य तरीके से मनाया जाता है। इस वर्ष देव दीपावली पर वाराणसी में गंगा घाट पर भारी संख्या में दीप प्रज्वलित किए गए हैं। इसके बारे में हम आगे जानेंगे…

Dev Deepawali 2024: देव दीपावली का महत्व

देव दीपावली का सनातन धर्म में एक विशेष महत्व है। देव दीपावली का उत्सव  दीपावली त्यौहार के लगभग 15 दिन के बाद मनाया जात है। देव दीपावली का पर्व विशेष रूप से काशी से जुड़ा हुआ है। काशी जिसे धर्म की नगरी व सबसे पवित्र नगरी कहा जाता है, इसके पीछे का भी एक कारण है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सभी देवता गण धरती पर एक साथ उतरे थे, धरती पर यह पवित्र स्थान काशी ही था इसीलिए काशी को पवित्र नगरी व धर्म की नगरी माना जाता है। 

देव दीपावली के दिन काशी के घाटों को दीपकों से सजाया जाता है। इस दिन दीपदान का भी अत्यधिक महत्व है और इसी के साथ भक्तगण गंगा स्नान का भी लाभ उठाते हैं। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

क्यों मनाई जाती है Dev Deepawali 

देव दीपावली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है जो की दीपावली के लगभग 15 दिन बाद आता है। इस दिन दीपावली मनाने से लेकर एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसमें कहा गया है कि “एक बार महाबली राक्षस त्रिपुरासुर ने कई वरदान प्राप्त करने के पश्चात देवताओं की नगरी स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया था। अधिक बलशाली होने के कारण उसने देवताओं से सारे अधिकार छीन लिए थे तथा उनका स्वर्ग लोक भी छीनकर अपने अधिकार में ले लिया था।

सभी देवताओं को स्वर्ग लोक से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, जिससे सभी देवता अत्यधिक परेशान हो गए। उन्होंने अपनी इस परेशानी को सुलझाने के लिए कैलाश की ओर प्रस्थान किया तथा देवाधिदेव महादेव के पास पहुंच गए। देवताओं ने महादेव को सारा प्रसंग कह सुनाया तथा उनसे मदद करने का अनुरोध किया।

तब भगवान शिव ने उस त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया और उसके आतंक से देवताओं को मुक्ति दिलाई। त्रिपुरासुर के वध के पश्चात अपना स्वर्ग लोक वापस प्राप्त करने पर देवता अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव के धाम काशी में जाकर गंगा किनारे दीपों को प्रज्वलित किया और दीपावली का उत्सव मनाया व भगवान शिव की पूजा अर्चना की। बस तभी से देव दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है।

वाराणसी गंगा घाट पर जले इतने दिए 

देव दीपावली के अवसर पर काशी में अत्यंत ही धूमधाम से उत्सव का आयोजन किया गया व भव्य गंगा आरती का आयोजन भी किया गया। इस महाआरती में लगभग एक लाख लोग शामिल हुए। देव दीपावली के अवसर पर गंगा किनारे लगभग 84 घाट और 700 मठ व मंदिरों में लगभग 25 लाख दिए जलाए गए। इस दौरान एक घंटे तक रंगारंग आतिशबाजी का आयोजन भी हुआ जिससे आसमान रंगीन आतिशबाजी से झिलमिल उठा। इस दौरान कई लेजर शोज भी हुए जिसने देव दीपावली के इस दीपोत्सव को और भी खूबसूरत बना दिया।

काशी में जमा हुई लाखों की भीड़

देव दीपावली के उत्सव को देखने के लिए काशी में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे जबकि भिन्न-भिन्न देश से अनेक पर्यटक भी भारत की संस्कृति से सजे इस उत्सव को देखने के लिए आतुर रहे। देव दीपावली को देखने के लिए करीब 40 देशों से मेहमान भी आए थे। अनुमान लगाया जा रहा है कि दुनिया भर से मिलाकर लगभग 15 लाख लोग इस दिन काशी में इस उत्सव को देखने के लिए पहुंचे थे।

इस उत्सव का लोगों ने अत्यंत ही आनंदित होकर लुत्फ उठाया। देव दीपावली के अवसर पर रंग-बिरंगे झालर व दीप मालाओं की सजावट देखने लायक थी। दीप मालाओं से कई कलाकृतियां को भी उकेरा गया जो देखने में अत्यंत की आकर्षक लग रही थी। इस वर्ष काशी में देव दीपावली के उत्सव का आयोजन व आतिशबाजी अत्यंत थी मनोरम व अविस्मरणीय रही।


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